आज माथे से पसीने ऐसे बहे
की आंसू भी चुपके निकल आए,
अरसे से ठहरे थे
आज अबाध बह गए.
खूब आते हैं पसीने आजकल
वजह-बेवजह, बेमौसम
पानी बहा जाते हैं ,
तिनके के निचोड़ को
पुरे टहनी की तोड़
बता जाते हैं .
कहा मिलता हैं अब
पीने को सस्ता पानी,
कहा धुल पते है हम
नंगे हमाम में,
फिर भी बहाते हैं हम
मंहगे पसीने के कतरे .
चेहरे की रंगत गयी
कई गढ़े खुद गए
और ,
आँखों के पानी
पास के सबसे गहरे काले गढ़े
भरने के होड़ में लग गए.
आज माथे से पसीने ऐसे बहे . . .
PS: Written on Tuesday, 19/07/2011 in NZM Bareilly Intercity on way to Bareilly ...
की आंसू भी चुपके निकल आए,
अरसे से ठहरे थे
आज अबाध बह गए.
खूब आते हैं पसीने आजकल
वजह-बेवजह, बेमौसम
पानी बहा जाते हैं ,
तिनके के निचोड़ को
पुरे टहनी की तोड़
बता जाते हैं .
कहा मिलता हैं अब
पीने को सस्ता पानी,
कहा धुल पते है हम
नंगे हमाम में,
फिर भी बहाते हैं हम
मंहगे पसीने के कतरे .
चेहरे की रंगत गयी
कई गढ़े खुद गए
और ,
आँखों के पानी
पास के सबसे गहरे काले गढ़े
भरने के होड़ में लग गए.
आज माथे से पसीने ऐसे बहे . . .
PS: Written on Tuesday, 19/07/2011 in NZM Bareilly Intercity on way to Bareilly ...