हम, तुम और हमारी खुशिया

हम थे , तुम थे 
हमारी खुशिया थी,
और इन खुशियों की 
छोटी सी इक दुनिया थी.

नया साथ था 
पुरानी पहचान थीं,
इन नयी - पुरानी रिश्तों की 
इक अनूठी जज्बात थी.

जो तेरा था 
वो मेरा हुआ,
जो मेरा था 
वो तेरा हुआ.

तुम्हारे सपने 
मेरे मकसद बने,
मेरे मकसद 
तुम्हारे सपने.

अटूट बंधन था
हौसले बड़े थे,
मंजिल दूर थी
और हम चल पड़े थे.

गहरे सागर में
उतरना था हमे,
और छिछले गागर में
हम डूब गए.

मानाकि ये झंझावात 
बड़ी थी,
इक अनहोनी की 
आहट थी.

तो क्या हम ऐसे 
रुक जायेगे,
लड़ने से पहले 
यूँ टूट जायेगे ?

यह तो एक 
छोटा सा ठहराव है,
अपनी मकसद को
पड़ाव बनाने से पहले.

अभी हमे अपनी 
जज्बातों को बड़ा बनाना हैं,
अपनी दुनिया में
सबको बुलाना हैं. 


तारीफ पे तारीफ

तारीफ।।।
कुछ कह के करते है
कुछ जता  के करते है
कुछ बड़े इत्मिनान से करते है,
मगर करते है सभी तारीफ .

तारीफ की कोई वजह नहीं होती
तारीफ की  कभी जरुरत नहीं  पड़ती,
तारीफ बस तारीफ से होती है .

तारीफ  उनकी होती है
जिनको इसकी फितरत नहीं होती ,
उनकी क्या कोई तारीफ करेगा
जिनकी वजह से ये तारीफ होती हैं.