मन महसूस करता हैं

"उडती अहसासों में
चलती जज्बातों में ,
मन कुछ बेमन सा
महसूस करता हैं |

वो उडती थी
वो चलती थी ,
मन ही मन में
न जाने कैसे
ये सबकुछ महसूस करती थी |

ये उड़न अधूरी हैं
ये चलन कहा पूरी हैं ,
ये मन कब चुप बैठा हैं
जाने-अनजाने
कुछ भी महसूस करता हैं |

उड़न की आकांक्षा
चलन की महत्वाकांक्षा ,
मन का पंक्षी
आप ही
सब पाप महसूस करता हैं |

अगर हम इसे उड़न कहते हैं
अगर यही जीवन की चलन हैं ,
तो फिर मन औरों के मन के
दमन को क्यों नहीं महसूस करता हैं |

चालों हम उड़ जायें
कही और चले जाये ,
मन के मन से परे
महसूस के अहसास को
महसूस कर जाये | "

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